Child Hunger in india(भोजन है पर,पहुँच के बाहर)
मैं हमेसा ही सोचता था की अगर मेरा देश कृषि प्रधान है तो इसका अर्थ है की सभी को को इतना भोजन तो मिलता ही होगा की लोग अपना जीवन यापन कर सके पर मैं गलत था ,हमारे देश में सभी को भोजन आसानी से नहीं मिलता , खासकर छोटे बच्चे या वो लोग जो सड़को के आस पास रहते है I
3000 बच्चे हर रोज़ भारत में मरते है भोजन की कमी और कम पोषण वाले खाने की वजह से
4 में 1 बच्चा कुपोषित है
24% बच्चे 5 साल से कम उम्र में ही अपनी जान से हाथ धो बैठते है I
अक्सर सड़को पर आपको लोग देखने को मिलते ही होंगे हम सब ही उन्हें रेलवे स्टेशन बस स्टैंड या किसी भी सार्वजनिक जगह तो देखते ही है ,कभी हमारे अंदर का इंसान उनकी मदद भी कर देता है और कभी हम अपनी परेसानी में मुह छिपाये बस देखते रहते है और और अनदेखा कर वहाँ से चले जाते है I
मैं भी हमेसा ही रूबरू होता हूँ अंदर से मन दुखी भी होता है कभी पैसे तो कभी भोजन देकर आगे बढ़ जाता हूँ,सोचता रहता हूँ की, ऐसा क्या रास्ता निकले या ऐसा क्या किया जाये की इस परिस्थिति को काम किया जा सके क्योंकि ख़त्म तो होना शायद मुश्किल है I
मैंने काफी पढ़े लिखे लोगो को यह कहते सुना है की लोग अगर सड़को पर भीख मागते है या बच्चे सड़को पे अगर भीख मागंते है तो ये उनकी आदत है , वो लोग को काम न करने की आदत पड़ चुकी है ,
मैं ऐसे लोगो को कहना चाहता हूँ की कोई भी भीख मज़बूरी में ही मांगता है सभी ने अपने लिए बड़े ही सपने देख रखे है चाहे बड़े घर का हो या एक झोपड़ी में रहने वाला ,जब भी हम किसी के आगे हाथ फैलाते है तो उसमे कही न कही हमारी मज़बूरी ही होती है I
आने वाले समय में हमें अपने देश से इस समस्या को हटाना होगा सरकार अपना काम करे या न करे हमें अपना काम करना होगा कुछ छोटे प्रयास जो हम कर सकते है ताकि कोई बच्चा या बूढ़ा भूखा उठे पर भूखा सोये न I आनाज़ की कमी नहीं है हमारे देश में .........
थोड़ा प्रयास .... बस हम अपने आस पास बदलाव ज़रूर ला सकते है
3000 बच्चे हर रोज़ भारत में मरते है भोजन की कमी और कम पोषण वाले खाने की वजह से
4 में 1 बच्चा कुपोषित है
24% बच्चे 5 साल से कम उम्र में ही अपनी जान से हाथ धो बैठते है I
अक्सर सड़को पर आपको लोग देखने को मिलते ही होंगे हम सब ही उन्हें रेलवे स्टेशन बस स्टैंड या किसी भी सार्वजनिक जगह तो देखते ही है ,कभी हमारे अंदर का इंसान उनकी मदद भी कर देता है और कभी हम अपनी परेसानी में मुह छिपाये बस देखते रहते है और और अनदेखा कर वहाँ से चले जाते है I
मैं भी हमेसा ही रूबरू होता हूँ अंदर से मन दुखी भी होता है कभी पैसे तो कभी भोजन देकर आगे बढ़ जाता हूँ,सोचता रहता हूँ की, ऐसा क्या रास्ता निकले या ऐसा क्या किया जाये की इस परिस्थिति को काम किया जा सके क्योंकि ख़त्म तो होना शायद मुश्किल है I
मैंने काफी पढ़े लिखे लोगो को यह कहते सुना है की लोग अगर सड़को पर भीख मागते है या बच्चे सड़को पे अगर भीख मागंते है तो ये उनकी आदत है , वो लोग को काम न करने की आदत पड़ चुकी है ,
मैं ऐसे लोगो को कहना चाहता हूँ की कोई भी भीख मज़बूरी में ही मांगता है सभी ने अपने लिए बड़े ही सपने देख रखे है चाहे बड़े घर का हो या एक झोपड़ी में रहने वाला ,जब भी हम किसी के आगे हाथ फैलाते है तो उसमे कही न कही हमारी मज़बूरी ही होती है I
आने वाले समय में हमें अपने देश से इस समस्या को हटाना होगा सरकार अपना काम करे या न करे हमें अपना काम करना होगा कुछ छोटे प्रयास जो हम कर सकते है ताकि कोई बच्चा या बूढ़ा भूखा उठे पर भूखा सोये न I आनाज़ की कमी नहीं है हमारे देश में .........
थोड़ा प्रयास .... बस हम अपने आस पास बदलाव ज़रूर ला सकते है
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